tag:blogger.com,1999:blog-62314157974644310742024-03-19T15:43:30.939-07:00Meri KavitayenSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-42234809763717647352010-09-20T21:44:00.000-07:002010-09-20T21:51:49.979-07:00अँधेरा रोज मिलता है<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTye0qDdfK9F0l7gahSEa0AKWOo991gauTUF2khY3mZ7Ahy7SATRukQnoQDJM6xjTYrkQpcFMIBNeGJRRDtGHSxK9uRxDMy-7VY0OxYG8DpUH8__gJYFXHbBIeUkhUJZ0wvHYIySORqMU/s1600/photo.cms.jpeg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 273px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTye0qDdfK9F0l7gahSEa0AKWOo991gauTUF2khY3mZ7Ahy7SATRukQnoQDJM6xjTYrkQpcFMIBNeGJRRDtGHSxK9uRxDMy-7VY0OxYG8DpUH8__gJYFXHbBIeUkhUJZ0wvHYIySORqMU/s320/photo.cms.jpeg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5519224867794374386" /></a><br />कहाँ मैं ढूँढने जाऊँ अँधेरा रोज मिलता है<br />सुबह की पालकी लेकर सवेरा रोज मिलता है<br /><br /> उड़ा आकाश का पंछी बहुत ही दूर जायेगा<br /> मुसाफिर है मुसाफिर को बसेरा रोज मिलता है<br /><br />हमें हैं देखते वो भी हमारी नजर है उन पर<br />नजर में जो रहा बसता चितेरा रोज मिलता है<br /><br /> नहीं चौकस पहरूये जब रहें चौकस कहां तक हम<br /> यहाँ हर मोड़ पर चौकस लुटेरा रोज मिलता है<br /><br />उन्हें अपनी पड़ी केवल नहीं चिन्ता गरीबों की<br />झँपोली में लिये नागिन सपेरा रोज मिलता है<br /><br /> सुलाता है चुभन को वो दिहाड़ी रोज ले लेकर<br /> तलाशी में गुजारे की पथेरा रोज मिलता हैSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-25577898651738804762009-10-26T05:51:00.000-07:002009-10-26T05:52:23.434-07:00फिर शेष क्यानौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें<br /><br />दनदनाती चल रही है गोलियाँ<br />हर नगर में ज़ालिमों की टोलियाँ<br />जल गया ये देश तो फिर शेष क्या ! <br /><br /> जालिमों का वक्त पर संहार करना है तुम्हें<br /> नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें<br /><br />प्रेममय, अपनत्व अब फूले फले<br />साधना का दीप निश दिन ही जले<br />आदमी को आदमी से प्यार हो<br /><br /> आदमियत का पुनः श्रृंगार करना है तुम्हें<br /> नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें<br /><br />गीत वह जो प्रेम का संदेश दें<br />कल्पनाओं को नया परिवेश दें<br />प्रेम की झंकार गूँजे देश में<br /><br /> सत्य का, उत्थान का आधार करना है तुम्हे<br /> नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें <br /><br /> - जयसिंह आर्य ‘जय’Samay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-87293457252532485292009-10-26T05:49:00.000-07:002009-10-26T05:50:52.040-07:00निर्धनजीना दूभर निर्धन का<br /> मरना दुष्कर निर्धन का<br /><br />पीना क्या खाना इसका<br />हँसना क्या गाना इसका<br />ऊषा औ’ संध्या जैसा<br />आना क्या जाना इसका<br /> क्या है सुखकर निर्धन का<br /> जीना दूभर निर्धन का<br /><br />इसकी मेहनत पर तो<br />औरों के बनते घर तो<br />करता अपराध कोई<br />दोष आये इसके सर तो<br /> कैसा ईश्वर निर्धन का<br /> जीना दूभर निर्धन का<br /><br />किस्मत क्या इसकी पलटे<br />भूखे हैं इसके बच्चे<br />भूख, प्यास की ज्वाला दहके<br />आँखों में सागर छलके<br /> कहाँ है कविवर निर्धन का <br /> जीना दूभर निर्धन का <br /><br /> - जयसिंह आर्य ‘जय’Samay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-84628322938667361832009-10-26T05:47:00.001-07:002009-10-26T05:49:09.123-07:00स्लमडॉगअपने धंधे चमकाने हेतु<br />गरीबों का नया नाम दिया स्लमडॉग<br />झुग्गियों में रहनेवाले कुत्ते<br />उनकी स्थिति दिखाकर हो गए मालामाल<br />बन गए समाचारपत्र के हेडलाईन<br />लाना था चर्चा में स्लमडॉग को इसीलिए<br />विदेशियों के पुरस्कार और सम्मान की हुई चर्चा पर चर्चा<br />खुश हो गए हम विदेशी पुरस्कार पाकर<br />मस्त हो गए हम अपनी गरीबी पाकर<br />उनकी आदत है गरीबी को पुरस्कृत करना<br />हमारी आदत है गरीबी में तृप्त रहना<br />क्या खत्म हो सकेगी गरीबी?<br />गरीबी तो गरीबों के साथ खत्म होगी<br />खत्म होगी लाचारी और बेबसी<br />ये अलग बात है तब दुनियाँ नहीं होगी<br />क्योंकि युद्ध के बाद दुनियाँ बचेगी कहाँ<br />मैंने पढा था जब-जब संवेदनशीलता खत्म होगी<br />तब-तब होगा एक नया युद्ध...... <br /><br />गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-82569381291348480672009-10-26T05:43:00.000-07:002009-10-26T05:46:40.608-07:00ये लड़कियाँखुद इस्तेमाल हो रही ये लड़कियाँ,<br />पश्चिमी सभ्यता के मोहपाश में,<br />जकड़ी जा रही हैं ये लड़कियाँ,<br />नहाने के साबुन से कंडोम के विज्ञापन तक में ,<br />अपना जिस्म दिखा रही हैं ये लड़कियाँ,<br />कभी फैशन शो में, कभी चीयर गर्ल बनकर,<br />जलवे दिखा रही हैं ये लड़कियाँ,<br />जिस्म को ढकने के बजाय जिसने,<br />दिखाने की वस्तु बना दिया,<br />खुद बदनाम हो गई हैं ये लड़कियाँ,<br />क्या उम्मीद करूँ बनेगी कोई लक्ष्मीबाई,<br />जन्म लेगी अब कोई सीतामाई,<br />जब संस्कृति और संस्कार को नहीं जानेगी,<br />हम क्या थे, क्या हैं और क्या होंगे,<br />जब तक जानेंगी नहीं ये लड़कियाँ,<br />गिरती चली जाएँगी, पतन होता जाएगा,<br />आपको लगता है सम्मान दिलाएँगी ये लड़कियाँ?<br />इनको सुधारने क्या कोई नया जन्म लेगी?<br />अब भी वक्त है सुधर जाओ संभल जाओ,<br />गुजरे जमाने का आदर्श छोड़ रही हैं ये लड़कियाँ,<br />तलाक, हत्या और बलात्कार की शिकार ये हो रहीं,<br />जिंदा जलाए जाने की खबर बन रही ये लड़कियाँ,<br />कहाँ गई वो शर्म, हया, वो त्याग , वो भावना,<br />कभी आदर्श हुआ करती थीं ये लड़कियाँ,<br />शायरों, कवियों, ग़जलकारों की विषय जो हुआ करती थीं,<br />डॉक्टरों के यहाँ गर्भपात करा रही यें लड़कियाँ,<br />आजादी का गलत अर्थ जब-जब निकालेंगे,<br />बद नहीं बल्कि बदतर हो जाएँगी ये लड़कियाँ,<br />चाहे हो हिंदू, मुसलमान, सिख, या इसाई,<br />कभी न कभी होंगी परायी ये लड़कियाँ,<br />सास-ससुर, ननद और देवर-जेठ के नखरे,<br />शिक्षा दो इनको कैसे भार उठाएँगी ये लड़कियाँ,<br />नारी के नारीत्व को जब ये अपनाएँ,<br />खुद की ही नहीं, समाज की भी पहचान बनेंगी ये लड़कियाँ । <br /><br />गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-8148319524003109552009-10-19T06:28:00.000-07:002009-10-19T06:29:52.102-07:00“मत गर्दिशी की बात कर”गर्दिशों में जी रहा मैं,<br />मत गर्दिशी की बात कर ।<br />हो सके यदि कर सको तो,<br />प्यार की कुछ बात कर ॥<br /><br /><br /><br /><br />शून्य सा अब मैं खड़ा हूँ,<br />बस अभां की रात है ।<br />स्वप्न में ही देखता हूँ,<br />चाँदनी भी साथ है ॥<br /><br /><br /><br /><br />इक दिया बनकर प्रिये तू,<br />कुछ रोशनी इजहार कर ।<br />गर्दिशों में जी रहा मैं,<br />मत गर्दिशी की बात कर ।<br />हो सके यदि कर सको तो,<br />प्यार ................. ॥<br /><br /><br /><br /><br />इम्तहाने वक्त ने बस वक्त की पहचान दी।<br />लग रहे तो जो पराए जिन्दगी की राह दी ॥<br /><br /><br /><br /><br />होकर पराया ही सही हूँ,<br />हम सफर बन प्यार कर ।<br />गर्दिशों में जी रहा मैं,<br />मत गर्दिशी की बात कर ।<br />हो सके यदि कर सको तो<br />प्यार की ............. ॥<br /><br /><br /><br /><br /><br />‘ढूँढता था मैं जहाँ में,<br />बस एक रहनुमा की चाह थी ।<br />होश जब मुझको हुआ,<br />मानो उम्र ही गुजार दी ॥<br /><br /><br /><br /><br />सोच ऐसी ना रही अब, तूँ वफा या बेवफा,<br />बेवफा होकर सही तूँ कुछ वफा की बात कर ।<br />गर्दिशों में जी रहा मैं, मत गर्दिशी की बात कर,<br />हो सके यदि कर सको, प्यार.....................॥<br /><br /><br /><br /><br /><br />कह रहा मुझसे चमन,<br />तोड़कर अब अपना मौन ।<br />जख्म अपने देख ले तूँ,<br />कुछ मरहमें इजाद कर ॥<br /><br /><br /><br /><br />साथ जिनका पा लिया है, बस उन्हीं से प्यार कर,<br />गर्दिशों में जी रहा मैं मत गर्दिशी की बातकर ।<br />हो सके यदि कर सको तो, प्यार.....................॥<br /><br /><br /><br /><br /><br />प्यार के इस राह पर,<br />सहादतें हजार हैं ।<br />मान ले तूँ जिन्दगी,<br />एक फासले गुबार है ॥<br /><br /><br /><br /><br />इस निशा की कालिमा में, तूँ चाँद बन जहान पर ।<br />मत गवाँ इस वक्त को आ जिगर से प्यार कर,<br />गर्दिशों में जी रहा मैं, मत गर्दिशी की बात कर ।<br />हो सके यदि कर सको तो, प्यार की कुछ बात कर ॥Samay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-36582981542358235432009-09-05T06:09:00.000-07:002009-09-05T06:27:00.187-07:00भोजपुरी गीत“पिया कासे कहूँ मन पीर”<br />सुखाई गयो नयना के नीर,<br />पिया कासे कहूँ मन की पीर ।<br /><span class=""> घरवा</span> बसाई पिया गइले विदेशवाँ, <br /> चिट्ठियाँ न भेजला, न भेजला सनेशवाँ । <br /><span class=""> रूपिया</span> सवतिया से नेहिया लगवला, <br /> कवने करन पिया हमें बिसरावला ॥<br />अब तो घरवा (अँगना) लगे जंजीर<br />होपिया कासे कहूँ मन की पीर हो ।’<br />सुखाई गयो---------------------------<br /> अब तो पिया अंग्रेज होई गइला, <br /> गऊवाँ देहतवा से दूर होई गइला । <br /> आपन सुरतिया सपन कई दिहला, <br /> एहि रे अभागिन क नीदिया चोरवला ॥<br />मति मारा करेजवाँ मे तीर हो<br />पिया कासे कहूँ मन की पीर हो ।<br />सुखाई गयो नयना-------<br /><span class=""> कइसे तूँ बाट पिया इह बतावा, </span><br /><span class=""> हो सके तो हमरा के तनि समझावा । </span><br /><span class=""> बेकल इ मन के रहिया देखावा, </span><br /><span class=""> अपने चरनवाँ क दासी बनावा ।</span><br />पिता तूँ हमर तकदीर हो,<br />पिया कासे कहूँ मन की पीर हो ।<br />सुखाई गयो नयना --------<br /><span class=""> “इहवाँ क मटियाँ तूँ कहबो न भूलइयाँ, </span><br /><span class=""> गंगा के पनियाँ तूँ माथे चढ़ाईयाँ । </span><br /><span class=""> माई की मूरतियाँ तूँ सीना से लगईयाँ, </span><br /><span class=""> देशवा के खातिर तूँ सब कुछ लूटईयाँ ॥</span><br />पिया होई जइबा भारत क वीर हो,<br />पिया कासे कहूँ मन की पीर हो ।<br />सुखाई गयो नयना ------------------- <br /><span class=""></span><br /><span class=""> पं. कृष्ण मुरारी मिश्रा</span>Samay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-86781272803502897192009-07-23T23:04:00.001-07:002009-07-23T23:04:39.576-07:00समीक्षा का दर्दबीत गए वर्ष दो उन्हें दिए हुए पुस्तक<br />जाने क्यों मौन हैं वो अभी तक समीक्षक<br />कितनी टीस देती है ये पुस्तक समीक्षा<br />कैसे ले रहे हैं ये कवि की परीक्षा<br />दंभ से भरे हुए ये महोदय समीक्ष<br />नई पौध के हैं ये रक्षक या कि भक्षक<br />धारा, विद्या विषय नहीं है इन्हें सरोकार<br />ऐसे समीक्षकों को है बार-बार धिक्कार ।<br /><br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-1966729315442174342009-07-23T22:59:00.000-07:002009-07-23T23:00:10.990-07:00रंगहीन दर्दभूख से तड़पते व्यक्ति का दर्द<br />बिन ब्याही बेटी के माँ का दर्द<br />नशे में धुत पति के व्यवहार का दर्द<br />शराबी बेटे के हरकतों का दर्द<br />अपनी संपत्ति खो जाने का दर्द<br />बीमारी से उत्पन्न कष्ट का दर्द<br />प्रसव वेदना से तड़पती माँ का दर्द<br />अपनों के खो जाने का दर्द<br />प्रियतम के बिछड़ने का दर्द<br />वेदनाओं को कलमबद्ध करने का दर्द<br />संवेदनाओं को महसूस करने का दर्द<br />देश के लिए मर मिटने का दर्द<br />धर्म और न्याय पर अत्याचार का दर्द<br />ज्यादा होने का दर्द<br />लाचारी और अभाव का दर्द<br />बेबसी में जिंदगी गुजारने का दर्द<br />दर्द में डूबे रहना ही तो<br /> हमारी नियति है<br />जो ना डूबे इस दर्द में<br />उसे क्या मालूम<br />कि इस दर्द का नशा<br />कैसा होता है,<br />क्योंकि यह दर्द तो रंगहीन है ।<br /><br /> गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-90813786690324686402009-07-23T22:58:00.000-07:002009-07-23T22:59:25.836-07:00राजनीतिराजनीति में ईमानदारी<br />और ईमानदारी की राजनीति,<br />राजनीति का अपराधीकरण<br />और अपराधियों का राजनीतिकरण<br /><br />जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर<br />हो रहें अब चर्चे<br />क्योंकि ईमानदारी, सत्य और अहिंसा<br />शब्द तो अब<br /><br />अप्रासंगिक हो चुके हैं<br />कौन करता है चर्चा इस पर<br />किसके पास है<br />बेफिजूल वक्त<br /><br />इतने वक्त में तो<br />एक राजनीतिज्ञ करोड़पति बन जाएगी<br />इस देश की गाढी कमाई को<br />स्विस बैंक में जमा कर<br /><br />हम देखते रह जाऐंगे<br />केवल चर्चा कर जाऐंगे<br />क्या कुछ हो सकता है<br />इन चर्चाओं से<br /><br />क्या परिवर्त्तन की धारा बहेगी<br />इन फिजाओं से<br />ईमानदार युवाओं के हाथ में होगी<br />तभी दूर होगी देश की तमाम विकृति ।<br /><br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-72573785256699639272009-07-23T22:57:00.002-07:002009-07-23T22:58:24.657-07:00प्रयासबता सकता है कोई<br />प्रकृति को बचाने हेतु<br />किए हैं अपने कितने प्रयास<br />क्या-क्या किया है आपने<br />आपने क्या-क्या नहीं किया<br />धरती को यूरिया से भरकर बंजर बना दिया<br />चट्टानों को तोड़कर कंकड और रास्ते बना लिए<br />मगर किसको फिक्र है पूछने की<br />पहाड़ों की संवेदना<br />उसे भी हुआ होगा दर्द<br />झेली होगी त्रादसी<br />पर्यटन के बहाने हमने उसको गंदा किया<br />प्रदूषित तन और मन से<br />सीधे-साधे पहाड़ियों को भी<br />विकृत कर दिया<br />हाय रे कमबख्त इंसान<br />कुछ तो शर्म करो<br />ये धरा, ये क्षितिज, ये इन्द्रधनुष<br />ये प्रकृति सब खत्म हो जाएगी<br />यदि तुम आज भी खुद को चेतो नहीं<br />विकल्पों को ढूँढो<br />सावधानियों को बरतो<br />इन्हें मूक और निर्जीव मत समझो<br />ये तो काफी अच्छे हैं<br />तुम्हारे जैसे सजीव से<br />जो खुद अपनी धरती माँ के<br />सीने पर खंजर चला रहे हैं<br />प्रकृति के साथ-अन्याय कर<br />पर्यावरण प्रदूषण फैला रहे हैं ।<br /><br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-43822893379807317772009-07-23T22:57:00.001-07:002009-07-23T22:57:43.449-07:00पहचाननीलेकणी ने कहा कि हम अपनी पहचान खो रहे हैं<br />क्या अर्थ है, क्या भावार्थ है इस वाक्य का<br />सोच रहा हूँ, विचार कर रहा हूँ<br />क्या हम वास्तव में अपनी पहचान खो गए हैं<br />हमारे मूल्य, हमारी संस्कृति खो ही तो गई है<br />हम अपने पराए, रिश्तों-नातों<br />और संवेदनाओं को भूलते जा रहे हैं ।<br /><br />अंधे व्यक्ति की तरह बढ़े जा रहे हैं<br />बिना उद्देश्य, बिना मंजिल के<br />क्य कभी पहुँच पाऐंगे<br />जिसका हमने सपना देखा है ।<br /><br />वही २०२० के सपनों का भारत<br />क्या किसी जादू से पूरा होगा?<br />पूरा होगा तो मात्र हमारी पहचान पर<br />हमारी एकता और अखंडता की शक्ति पर<br />हमारे सभ्यता और संस्कृति के बल पर<br />हमारे पूवर्जों, ऋषि मुनियों और बलिदानियों के त्याग पर<br />आज हम झूठी पहचान के बदौलत जीना चाहते हैं ।<br /><br />अपने कर्त्तव्य का निर्वहन किए बिना<br />अधिकार की बात करते हैं<br />क्या यह न्याय है?<br />इसका सही जवाब<br />मिलेगा हमें खुद से, हमे खुद से ।<br /><br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-58154805488076693812009-07-23T22:56:00.000-07:002009-07-23T22:57:01.667-07:00परंपराक्या है हमारी परंपरा<br />नहीं मालूम हमारे बच्चों को<br />न हमें गरज है नैतिक शिक्षा और संस्कार बताने की<br />परंपरा से आगे होने के चक्कर में<br />हम छोड़ देते हैं अपने पुराने परंपरा को<br /><br />चौतरफे षडयंत्र की माफिक हो रहे हैं हमले<br />हमारी संस्कृति और परंपरा पर<br />स्वच्छंद और उन्मुक्त हो रहे हैं हम<br />हमें ज्ञान ही नहीं अपनी परंअपरा का<br />वे कर रहे नए ईजाद इस पर<br /><br />और हमें दूर करने की ताना बाना है बुन रहे<br />पाश्चात्य संस्कृति की आँधी<br />क्या हमें उडा देगी<br />नहीं कमजोर हम इतने<br />यहा आँधी हमें क्या डराएगी?<br /><br />करनी होगी कुछ तैयारी<br />खींचना होगा एक एक बड़ा दायरा<br />उस पाश्चात्य संस्कृति के वृत के ऊपर<br />हम अपनी संस्कृति के बड़े वृत के द्वारा<br />ही तो कर पाऐंगे उसकी शक्ति को निस्तेज ।<br /><br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-88162170115212743432009-07-23T22:54:00.000-07:002009-07-23T22:56:14.966-07:00नजरघूरती रहती है नजर<br />वासना भरी गंधों से युक्त<br />पूछे कोई उस मासूम अंधखिली<br />नवयौवना से<br />जो घूरने वाली हर नजर को<br />भाँप लेती है<br />सूँघकर बता सकती है<br />घूरने वालों के अंदर की बात<br />क्या यह नजर का दोष है,<br />या उस नजर से देखनेवालों का<br />या समाज के चारित्रिक पतन का<br />पूछना है प्रश्न मुझे<br />अपने समाज से<br />दे सकता है कोई भी<br />इसका जवाब<br />ढूँढ रहा हूँ उस नजर को<br />जो इस नजरिए से मुक्त हो<br />बढ़ गई है बलात्कार और<br />अवयस्क गर्भ के मामले<br />हाय रे समाज<br />हाय यहाँ की स्थितियाँ परिस्थितियाँ<br />कब खत्म होगी ये<br />यही सोंचते-सोंचते फिर<br />एक नए सुबह की दस्तक देने<br />सूरज निकल आया है ।<br /><br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-91480583025277857412009-07-23T22:53:00.000-07:002009-07-23T22:54:32.598-07:00नवजात शिशुइस दुनियाँ का<br />सबसे बड़ा भाग्यवान है<br />नवजात शिशु<br />नहीं होती कोई चिंता<br />नहीं कोई तृष्णा,<br />नहीं होती छल प्रपंच<br />नहीं होती घृणा<br /><br />होती है मात्र मूक अभिव्यक्ति<br />प्यार और दुलार का प्रत्युत्तर<br />भूख आने पर रोने का नाटक<br />और दूध मिलने पर चुप्पी<br />उसका नहीं होता कोई दायरा<br />मात्र प्यार की शक्ति से<br />बँध जाता है वह<br />अपना-पराया<br />सब समान है उसके लिए<br /><br />काश हम भी नवजात ही बने रहते<br />क्योंकि सबों को हमसे<br />प्यार करने के लिए<br />दायरे से बँधना नहीं पड़ता<br />हमें आजादी होती<br />किसी के संग हँसने की, रोने की<br />नहीं रहती कोई चिंता<br />कोई भेदभाव और कोई परेशानी<br />हमें भी रहती जिन्दगी जीने की आसानी ।<br /><br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-66313854909440622092009-07-23T22:51:00.000-07:002009-07-23T22:53:42.568-07:00मेरा शहरजहाँ हम रहने लगते हैं<br />वही मेरा अपना शहर हो जाता है<br />जुड़ जाती है मेरी संवेदनाएँ उससे<br />परेशानियों से जूझते रहने की आदत<br />दोहरे जिन्दगी में जीने की फितरत<br />हमारे आदतों में शामिल कर देता है ये शहर<br />हम तो थे गाँव के सीधे सादे इंसान<br />उसूलों के लिए लड़ना था मेरा ईमान<br /><br />पर लगता है मुझे बदलते होंगे अपने रास्ते<br />अपनाना पड़ेगा हमें इस नए शहर के कायदे<br />कभी खुद को कभी तस्वीर को<br />तो कभी इस शहर को देखते हैं<br />क्या बिना लक्ष्य के कोई यहां पासे फेंकते है?<br />आज हुई शादी का कल नामोनिशाँ<br />नहीं मिलता कभी शहर में<br />किराए का सब कुछ<br />कभी सुकूँ नहीं देता मन<br /><br />अजीब हादसों को झेलने की<br />पड़ गई है आदत इस शहर में<br />पराए तो पराए, अपनों ने भी<br />दूरी बनायी इस शहर में<br /><br />फिर भी महानगर कहलाने का है गर्व इनको<br />नाम कमाना हो जिनको उल्टे-सीधे हरकत करो ।<br /><br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-66208160995919742712009-07-23T22:47:00.000-07:002009-07-23T22:51:44.924-07:00मैं तो ऐसा ही हूँनहीं सुहाता है मुझे उनका घमंड<br />भले ही सहना पडे यह गर्मी का प्रचंड<br /><br />सब कुछ सह जाता हूँ मगर,<br /> कुछ नहीं कहकर सब कुछ कह जाता हूँ<br />बिन कहे रहने की आदत नहीं,<br />मानव सेवा को छोड़ मंदिर पूजना इबादत नहीं<br />आडंबर में जीते हैं लोग मगर<br />कर्मयोग एवं सादगी की दिशा में हमने बढ़ाया अपना डगर<br />मेरे हौसले, मेरे जज्बे, मेरे दृष्टि पर शक हो किसी को अगर<br />फाड़कर दिखा सकता हूँ अपना जिगर<br />मेरी भलमनसाहत को कोई कमजोरी न समझे<br />मुझसे काम निकलवाने को अपनी चालाकी न समझे<br />कुछ अपने पराए हुए, कुछ पराए हुए अपने<br />बिन देखे ही पूरे हुए हैं किसी के सपने?<br />मेरे व्यवहार में है चुंबकीय शक्ति<br />कर्म को पूजा है अब तक उसी के प्रति है मेरी भक्ति<br />विश्वास और जिजिविषा को किया है मैने अर्जित<br />अवगुणों, पश्चाताप, संताप को कर दिया वर्जित<br />शांत तालाब में कंकड़ फेंककर तरंगों को देखना<br />बुद्धि और चातुर्य के ब्रह्यास्त्र को लक्ष्य की ओर फेंकना<br />शक्ति पुंजों की पंक्ति में आनोको हूँ बेकरार<br />क पर्सेन्ट ईमानदारी पर टिका है यह संसार<br />बढ़ेगी ईमानदारों की ताकत मुझे तो है विश्वास<br />हर संकट से सामना कर, नहीं छोड़ा अब तक आस ।<br />नहीं बदल सकता मैं स्वयं को<br />क्योंकि मैं तो ऐसा ही हूँ ।<br /><br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-25823858362485869622009-07-22T01:40:00.000-07:002009-07-22T01:52:04.312-07:00क्या हम आजाद हुए ?भ्रष्टाचार, भय और भूख का,चारों तरफ संग्राम छिड़ा है ,<br /> जिसके लिए वीरों ने किया न्यौछावर अपना प्राण,<br />समस्याएं बढ़ गई, नहीं मिला अब तक त्राण,<br />पहले चरम पर हुआ करता था अंग्रेजों का जुल्म,<br />फिर भी हमें था इसका इल्म,<br />अंग्रेजों को तो हमने मार भगाया,<br />पर उस हालात ने हमारा स्वाभिमान जगाया,<br />अब तो हमारा स्वाभिमान मर चुका है,<br />क्रांति आएगी कैसे यह प्रश्न अब उठ चुका है,<br />आओ वीरो, आओ युवकों, आओ हे नारी शक्तियों,<br />भारत माँ के इज्जत से तो खेल रहें है अपने जयचंद,<br />खोज रहा हूँ जिन्दा लोगों को,बलिदानियों और क्रांतिकारियों को,<br />क्रांति हेतु पुनः करना है तुम्हें शंखनाद,<br />बिना इसके क्या हो सकेगा मेरा देश आबाद?<br />पुराने कानून, देरी की न्याय व्यवस्था ,<br />इसके बदौलत क्या सुधरेगी भारत की अवस्था?<br />पारदर्शिता, सहकारिता, सहभागिता, समन्विता अपनानी पड़ेगी,<br />कुछ तुम करो कुछ हम करें यह आदत बनानी होगी ,<br />चल पड़ा हूँ मैं जलाने जहाँ है अब तक अंधेरा,<br />कितने लोग लालायित है आनंद की बिन बसेरा,<br />कैसे पाटी जाएगी दूरी कैसे बनेगा समाज में संतुलन,<br />योजनाकारों को करना पड़ेगा यह आकलन,<br />झूठे आंकड़ों की बदौलत वाहवाही को बेताब ये नेता,<br />कालाधन विदेश भेजेंगे, प्रश्न पूछने सांसद है घूस लेता,<br />किसकी आजादी, कैसी आजादी, कब मिलेगी आजादी,<br />गरीबों, मजलूमों, बेबसों को नहीं हैं इसका इल्म,<br />झेलने को विवश है आज भी अब तक ये जुल्म,<br />अपने पेट पर हाथ रखकर,<br />बिना अन्न के सो जाते होंगे कुछ बच्चे,<br />वो क्या जाने हकीकत क्या झूठे सपने होंगे सच्चे?<br />काश आज गाँधी जिंदा होते,<br />लोगों के विवेकहीन सुख और चरित्रहीन ज्ञान देखते,<br />मानवताविहीन विज्ञान, नीतिविहीन व्यापार और त्यागविहीन उपासना,<br /> सिद्धान्तविहीन राजनीति और श्रमविहीन सम्पत्ति की,<br /> होती है यहां अराधना,<br /> पढ़ा था मैंने,<br />“सूर्य में कितनी तपन है,अग्नि में कितनी जलन है,<br />बता सकते हैं वही लोग,जिनकी जिंदगी हवन है ,<br />बता सकते हैं आप कितने देंगे अपना बलिदान?<br />जान लें आप भी राष्ट्र प्रथम की भावना से ही,<br />जगेगा देश का यह स्वाभिमान ।<br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-89729243337367870472009-07-22T01:34:00.000-07:002009-07-22T01:39:55.510-07:00दायरावे कहते हैं मैने दायरा खींच रखा है,<br />अपनी अश्रुधारा से जीवन को सींच रखा है,<br />किसे नहीं है कष्ट किसको नहीं है दर्द का अहसास,<br />इसके बावजूद चेहरे से झलकता है दिव्य प्रकाश,<br />सारी हो अच्छाई- उनमें,नहीं हो कोई बुराई उनमें,<br />बिना हिचक वे कह सकते है,<br />फिर मुझको ही केवल वे सह सकते हैं,<br />कवियों सी लगती हैं, उनकी संवेदना,<br />पर वास्तव में नहीं है उनमें कोई चेतना,<br />वे सोचते है केवल अपने और अपने बारे में,<br />मैं तो जीता हूँ मात्र अपने गुजारे में,<br />सूँघ लेता हूँ उनकी होने वाली हरकतों को,<br />जान जाता हूँ उनके छद्म दर्द और अहसासों को,<br />वे घटा रहे हैं अपना दायरा,<br />मैं बढ़ा रहा हूँ अपना दायरा ।<br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-51766296334861303372009-07-22T01:31:00.000-07:002009-07-22T01:34:28.462-07:00भारत मातामैंने पूछा भारत माँ से एक प्रश्न,<br />रूढियाँ, अंधविश्वास, प्रथाएँ और परंपरा,<br />पूर्व से ही तो थे यहाँ पर,<br />फिर भी इतना भेद न था,<br />जो आज आरक्षण समर्थन -विरोध,<br />के कारण समाज के टुकड़ों में,<br />बँटने से हो चुका है,<br />साम्प्रदायिकता, आतंकवाद,आज भवें चढ़ा रहा है ,<br />संस्कृति का हो रहा पतन,<br />भ्रष्टाचार, बेईमानी बल खा रहा है,<br />बढ़ गई है हमारी अंतहीन चिंताएँ,<br />हो सकती है ये चिंताएँ,<br />ही सजाएँगी हमारी चिताएँ,<br />माँ अपने पुत्रों की स्थिति,<br />पर कुछ तो सोचो,<br />कुछ तो बोलो मुँह तो खोलो,<br />मैंने सुना है माँ का सीना विशाल होता है,<br />पुत्र देता है माँ को दगा मगर,<br />पुत्र को चोट लगने पर,<br />माँ को ही दर्द का एहसास होता है ।<br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6231415797464431074.post-78831223660801364692009-07-22T00:45:00.000-07:002009-07-22T01:25:36.169-07:00आज का प्रश्नहर तरफ उठ रहे हैं नए प्रश्न ,<br />कहीं जाति, भाषा, धर्म और क्षेत्रवाद का प्रश्न ,<br />कहीं उन्मुक्तता और यौन स्वच्छंदता का प्रश्न ,<br />कहीं भ्रष्टाचार, अपहरण, बलात्कार, हत्या, डकैती, चोरी, का प्रश्न ,<br />तो कहीं है आधुनिकता बनाम पुरातन का प्रश्न ,<br />कहीं विचार, दृष्टि और क्रांति का प्रश्न ,<br />कहीं दलित और मानवाधिकार का प्रश्न ,<br />कहीं आजादी और गुलामी का प्रश्न ,<br />कहीं विकास, न्याय और हार-जीत का प्रश्न ,<br />कब तक जूझते रहेंगे हम इन प्रश्नों से पूछता है मेरा अंतर्मन ,<br />तैयार नहीं कर पाता स्वयं को उसके उत्तर देने हेतु,<br /><span class=""></span> लगता है मुझे बनानी पड़ेगी विचार श्रृंखला की सेतु ,<br />कभी-कभी हमें लगता हैहम इन प्रश्नों के अभ्यस्त हो गए हैं ,<br />अब प्रश्न हमें प्रभावित नहीं कर सकती ,<br />क्योंकि वास्तव में हम प्रश्नों के दायरे में रहना ,<br />अपनी गुलामी मानते हैं,<br />जब कोई प्रश्न हमें उद्वेलित ही नहीं कर सकता ,<br />तब प्रश्न उठता है कि वैचारिक क्रांति होगी तो होगी कैसे?<br />क्योंकि अब प्रश्न विस्फोट नहीं करतेउन नकली पटाखों की तरह ,<br />जो आग लगने के बाद भी प्रभावहीन रहते हैं ।<br /> - गोपाल प्रसादSamay Darpanhttp://www.blogger.com/profile/13464242199151253010noreply@blogger.com0