सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

फिर शेष क्या

नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें

दनदनाती चल रही है गोलियाँ
हर नगर में ज़ालिमों की टोलियाँ
जल गया ये देश तो फिर शेष क्या !

जालिमों का वक्‍त पर संहार करना है तुम्हें
नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें

प्रेममय, अपनत्व अब फूले फले
साधना का दीप निश दिन ही जले
आदमी को आदमी से प्यार हो

आदमियत का पुनः श्रृंगार करना है तुम्हें
नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें

गीत वह जो प्रेम का संदेश दें
कल्पनाओं को नया परिवेश दें
प्रेम की झंकार गूँजे देश में

सत्य का, उत्थान का आधार करना है तुम्हे
नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें

- जयसिंह आर्य ‘जय’

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें