नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें
दनदनाती चल रही है गोलियाँ
हर नगर में ज़ालिमों की टोलियाँ
जल गया ये देश तो फिर शेष क्या !
जालिमों का वक्त पर संहार करना है तुम्हें
नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें
प्रेममय, अपनत्व अब फूले फले
साधना का दीप निश दिन ही जले
आदमी को आदमी से प्यार हो
आदमियत का पुनः श्रृंगार करना है तुम्हें
नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें
गीत वह जो प्रेम का संदेश दें
कल्पनाओं को नया परिवेश दें
प्रेम की झंकार गूँजे देश में
सत्य का, उत्थान का आधार करना है तुम्हे
नौजवानों देश का उद्धार करना है तुम्हें
- जयसिंह आर्य ‘जय’
सोमवार, 26 अक्टूबर 2009
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