बुधवार, 22 जुलाई 2009

क्या हम आजाद हुए ?

भ्रष्टाचार, भय और भूख का,चारों तरफ संग्राम छिड़ा है ,
जिसके लिए वीरों ने किया न्यौछावर अपना प्राण,
समस्याएं बढ़ गई, नहीं मिला अब तक त्राण,
पहले चरम पर हुआ करता था अंग्रेजों का जुल्म,
फिर भी हमें था इसका इल्म,
अंग्रेजों को तो हमने मार भगाया,
पर उस हालात ने हमारा स्वाभिमान जगाया,
अब तो हमारा स्वाभिमान मर चुका है,
क्रांति आएगी कैसे यह प्रश्न अब उठ चुका है,
आओ वीरो, आओ युवकों, आओ हे नारी शक्‍तियों,
भारत माँ के इज्जत से तो खेल रहें है अपने जयचंद,
खोज रहा हूँ जिन्दा लोगों को,बलिदानियों और क्रांतिकारियों को,
क्रांति हेतु पुनः करना है तुम्हें शंखनाद,
बिना इसके क्या हो सकेगा मेरा देश आबाद?
पुराने कानून, देरी की न्याय व्यवस्था ,
इसके बदौलत क्या सुधरेगी भारत की अवस्था?
पारदर्शिता, सहकारिता, सहभागिता, समन्विता अपनानी पड़ेगी,
कुछ तुम करो कुछ हम करें यह आदत बनानी होगी ,
चल पड़ा हूँ मैं जलाने जहाँ है अब तक अंधेरा,
कितने लोग लालायित है आनंद की बिन बसेरा,
कैसे पाटी जाएगी दूरी कैसे बनेगा समाज में संतुलन,
योजनाकारों को करना पड़ेगा यह आकलन,
झूठे आंकड़ों की बदौलत वाहवाही को बेताब ये नेता,
कालाधन विदेश भेजेंगे, प्रश्न पूछने सांसद है घूस लेता,
किसकी आजादी, कैसी आजादी, कब मिलेगी आजादी,
गरीबों, मजलूमों, बेबसों को नहीं हैं इसका इल्म,
झेलने को विवश है आज भी अब तक ये जुल्म,
अपने पेट पर हाथ रखकर,
बिना अन्‍न के सो जाते होंगे कुछ बच्चे,
वो क्या जाने हकीकत क्या झूठे सपने होंगे सच्चे?
काश आज गाँधी जिंदा होते,
लोगों के विवेकहीन सुख और चरित्रहीन ज्ञान देखते,
मानवताविहीन विज्ञान, नीतिविहीन व्यापार और त्यागविहीन उपासना,
सिद्धान्तविहीन राजनीति और श्रमविहीन सम्पत्ति की,
होती है यहां अराधना,
पढ़ा था मैंने,
“सूर्य में कितनी तपन है,अग्नि में कितनी जलन है,
बता सकते हैं वही लोग,जिनकी जिंदगी हवन है ,
बता सकते हैं आप कितने देंगे अपना बलिदान?
जान लें आप भी राष्ट्र प्रथम की भावना से ही,
जगेगा देश का यह स्वाभिमान ।
- गोपाल प्रसाद

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