इस दुनियाँ का
सबसे बड़ा भाग्यवान है
नवजात शिशु
नहीं होती कोई चिंता
नहीं कोई तृष्णा,
नहीं होती छल प्रपंच
नहीं होती घृणा
होती है मात्र मूक अभिव्यक्ति
प्यार और दुलार का प्रत्युत्तर
भूख आने पर रोने का नाटक
और दूध मिलने पर चुप्पी
उसका नहीं होता कोई दायरा
मात्र प्यार की शक्ति से
बँध जाता है वह
अपना-पराया
सब समान है उसके लिए
काश हम भी नवजात ही बने रहते
क्योंकि सबों को हमसे
प्यार करने के लिए
दायरे से बँधना नहीं पड़ता
हमें आजादी होती
किसी के संग हँसने की, रोने की
नहीं रहती कोई चिंता
कोई भेदभाव और कोई परेशानी
हमें भी रहती जिन्दगी जीने की आसानी ।
- गोपाल प्रसाद
गुरुवार, 23 जुलाई 2009
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