नहीं सुहाता है मुझे उनका घमंड
भले ही सहना पडे यह गर्मी का प्रचंड
सब कुछ सह जाता हूँ मगर,
कुछ नहीं कहकर सब कुछ कह जाता हूँ
बिन कहे रहने की आदत नहीं,
मानव सेवा को छोड़ मंदिर पूजना इबादत नहीं
आडंबर में जीते हैं लोग मगर
कर्मयोग एवं सादगी की दिशा में हमने बढ़ाया अपना डगर
मेरे हौसले, मेरे जज्बे, मेरे दृष्टि पर शक हो किसी को अगर
फाड़कर दिखा सकता हूँ अपना जिगर
मेरी भलमनसाहत को कोई कमजोरी न समझे
मुझसे काम निकलवाने को अपनी चालाकी न समझे
कुछ अपने पराए हुए, कुछ पराए हुए अपने
बिन देखे ही पूरे हुए हैं किसी के सपने?
मेरे व्यवहार में है चुंबकीय शक्ति
कर्म को पूजा है अब तक उसी के प्रति है मेरी भक्ति
विश्वास और जिजिविषा को किया है मैने अर्जित
अवगुणों, पश्चाताप, संताप को कर दिया वर्जित
शांत तालाब में कंकड़ फेंककर तरंगों को देखना
बुद्धि और चातुर्य के ब्रह्यास्त्र को लक्ष्य की ओर फेंकना
शक्ति पुंजों की पंक्ति में आनोको हूँ बेकरार
क पर्सेन्ट ईमानदारी पर टिका है यह संसार
बढ़ेगी ईमानदारों की ताकत मुझे तो है विश्वास
हर संकट से सामना कर, नहीं छोड़ा अब तक आस ।
नहीं बदल सकता मैं स्वयं को
क्योंकि मैं तो ऐसा ही हूँ ।
- गोपाल प्रसाद
गुरुवार, 23 जुलाई 2009
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