गुरुवार, 23 जुलाई 2009

मेरा शहर

जहाँ हम रहने लगते हैं
वही मेरा अपना शहर हो जाता है
जुड़ जाती है मेरी संवेदनाएँ उससे
परेशानियों से जूझते रहने की आदत
दोहरे जिन्दगी में जीने की फितरत
हमारे आदतों में शामिल कर देता है ये शहर
हम तो थे गाँव के सीधे सादे इंसान
उसूलों के लिए लड़ना था मेरा ईमान

पर लगता है मुझे बदलते होंगे अपने रास्ते
अपनाना पड़ेगा हमें इस नए शहर के कायदे
कभी खुद को कभी तस्वीर को
तो कभी इस शहर को देखते हैं
क्या बिना लक्ष्य के कोई यहां पासे फेंकते है?
आज हुई शादी का कल नामोनिशाँ
नहीं मिलता कभी शहर में
किराए का सब कुछ
कभी सुकूँ नहीं देता मन

अजीब हादसों को झेलने की
पड़ गई है आदत इस शहर में
पराए तो पराए, अपनों ने भी
दूरी बनायी इस शहर में

फिर भी महानगर कहलाने का है गर्व इनको
नाम कमाना हो जिनको उल्टे-सीधे हरकत करो ।

- गोपाल प्रसाद

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