घूरती रहती है नजर
वासना भरी गंधों से युक्त
पूछे कोई उस मासूम अंधखिली
नवयौवना से
जो घूरने वाली हर नजर को
भाँप लेती है
सूँघकर बता सकती है
घूरने वालों के अंदर की बात
क्या यह नजर का दोष है,
या उस नजर से देखनेवालों का
या समाज के चारित्रिक पतन का
पूछना है प्रश्न मुझे
अपने समाज से
दे सकता है कोई भी
इसका जवाब
ढूँढ रहा हूँ उस नजर को
जो इस नजरिए से मुक्त हो
बढ़ गई है बलात्कार और
अवयस्क गर्भ के मामले
हाय रे समाज
हाय यहाँ की स्थितियाँ परिस्थितियाँ
कब खत्म होगी ये
यही सोंचते-सोंचते फिर
एक नए सुबह की दस्तक देने
सूरज निकल आया है ।
- गोपाल प्रसाद
गुरुवार, 23 जुलाई 2009
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