बुधवार, 22 जुलाई 2009

आज का प्रश्न

हर तरफ उठ रहे हैं नए प्रश्न ,
कहीं जाति, भाषा, धर्म और क्षेत्रवाद का प्रश्न ,
कहीं उन्मुक्‍तता और यौन स्वच्छंदता का प्रश्न ,
कहीं भ्रष्टाचार, अपहरण, बलात्कार, हत्या, डकैती, चोरी, का प्रश्न ,
तो कहीं है आधुनिकता बनाम पुरातन का प्रश्न ,
कहीं विचार, दृष्टि और क्रांति का प्रश्न ,
कहीं दलित और मानवाधिकार का प्रश्न ,
कहीं आजादी और गुलामी का प्रश्न ,
कहीं विकास, न्याय और हार-जीत का प्रश्न ,
कब तक जूझते रहेंगे हम इन प्रश्नों से पूछता है मेरा अंतर्मन ,
तैयार नहीं कर पाता स्वयं को उसके उत्तर देने हेतु,
लगता है मुझे बनानी पड़ेगी विचार श्रृंखला की सेतु ,
कभी-कभी हमें लगता हैहम इन प्रश्नों के अभ्यस्त हो गए हैं ,
अब प्रश्न हमें प्रभावित नहीं कर सकती ,
क्योंकि वास्तव में हम प्रश्नों के दायरे में रहना ,
अपनी गुलामी मानते हैं,
जब कोई प्रश्न हमें उद्वेलित ही नहीं कर सकता ,
तब प्रश्न उठता है कि वैचारिक क्रांति होगी तो होगी कैसे?
क्योंकि अब प्रश्न विस्फोट नहीं करतेउन नकली पटाखों की तरह ,
जो आग लगने के बाद भी प्रभावहीन रहते हैं ।
- गोपाल प्रसाद

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