गुरुवार, 23 जुलाई 2009

प्रयास

बता सकता है कोई
प्रकृति को बचाने हेतु
किए हैं अपने कितने प्रयास
क्या-क्या किया है आपने
आपने क्या-क्या नहीं किया
धरती को यूरिया से भरकर बंजर बना दिया
चट्टानों को तोड़कर कंकड और रास्ते बना लिए
मगर किसको फिक्र है पूछने की
पहाड़ों की संवेदना
उसे भी हुआ होगा दर्द
झेली होगी त्रादसी
पर्यटन के बहाने हमने उसको गंदा किया
प्रदूषित तन और मन से
सीधे-साधे पहाड़ियों को भी
विकृत कर दिया
हाय रे कमबख्त इंसान
कुछ तो शर्म करो
ये धरा, ये क्षितिज, ये इन्द्रधनुष
ये प्रकृति सब खत्म हो जाएगी
यदि तुम आज भी खुद को चेतो नहीं
विकल्पों को ढूँढो
सावधानियों को बरतो
इन्हें मूक और निर्जीव मत समझो
ये तो काफी अच्छे हैं
तुम्हारे जैसे सजीव से
जो खुद अपनी धरती माँ के
सीने पर खंजर चला रहे हैं
प्रकृति के साथ-अन्याय कर
पर्यावरण प्रदूषण फैला रहे हैं ।

- गोपाल प्रसाद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें