गुरुवार, 23 जुलाई 2009

रंगहीन दर्द

भूख से तड़पते व्यक्‍ति का दर्द
बिन ब्याही बेटी के माँ का दर्द
नशे में धुत पति के व्यवहार का दर्द
शराबी बेटे के हरकतों का दर्द
अपनी संपत्ति खो जाने का दर्द
बीमारी से उत्पन्‍न कष्ट का दर्द
प्रसव वेदना से तड़पती माँ का दर्द
अपनों के खो जाने का दर्द
प्रियतम के बिछड़ने का दर्द
वेदनाओं को कलमबद्ध करने का दर्द
संवेदनाओं को महसूस करने का दर्द
देश के लिए मर मिटने का दर्द
धर्म और न्याय पर अत्याचार का दर्द
ज्यादा होने का दर्द
लाचारी और अभाव का दर्द
बेबसी में जिंदगी गुजारने का दर्द
दर्द में डूबे रहना ही तो
हमारी नियति है
जो ना डूबे इस दर्द में
उसे क्या मालूम
कि इस दर्द का नशा
कैसा होता है,
क्योंकि यह दर्द तो रंगहीन है ।

गोपाल प्रसाद

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कई सारी रचनाएँ पढीं ..दर्द रंगहीन नहीं ..इनमे तो 'पीड़ा ' का रंग है ...! ये रंग संवेदन शील लोगों को नज़र आता है ...

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